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छत्तीसगढ़ में आदिवासी महिलाओं को हल्दी की खेती बना रही आत्मनिर्भर

छत्तीसगढ़ में आदिवासी महिलाओं को हल्दी की खेती बना रही आत्मनिर्भर

छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय सरकार ने खेती और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में ज़्यादा से ज़्यादा महिलाओं को शामिल करने के लिए कार्यक्रम शुरू किए हैं। इससे महिलाओं को समूहों में जोड़कर खेती शुरू करने के लिए ज़रूरी पैसे और कौशल प्राप्त करने में भी मदद मिलती है। ऐसी ही एक योजना में 50 आदिवासी महिलाओं ने हल्दी की खेती को अपनी आय का मुख्य स्रोत बनाया है। किसानों को ज़्यादा पैसे कमाने के एक अच्छे तरीके के तौर पर सरकार उन्हें मसाले उगाने के लिए प्रेरित कर रही है।

इसलिए छत्तीसगढ़ सरकार ने महिला किसानों को हल्दी उगाने में मदद करने के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया है। इसकी शुरुआत दंतेवाड़ा इलाके में एक परीक्षण परियोजना के तौर पर हुई, जहाँ ज़्यादातर आदिवासी लोग रहते हैं। सरकार 5 शहरों की 50 महिलाओं के 10 समूहों को एक साथ लाकर इस परियोजना के ज़रिए आदिवासी महिलाओं को हल्दी उगाने में मदद कर रही है। हर समूह को खाद, बीज और दूसरी तकनीकी मदद मिलेगी।

राज्य सरकार के बागवानी विभाग ने इस कार्यक्रम की शुरुआत की और ये बिहान महिलाएँ हल्दी उगाने का तरीका दिखाकर आत्मनिर्भर बनने में सफल हुई हैं। परियोजना में शामिल पांचों शहरों की महिलाएं न केवल हल्दी की बेहतर खेती करने में सक्षम हुई हैं, बल्कि एक समूह के रूप में एक साथ काम करके वे अपने खेतों में इसका प्रसंस्करण और बिक्री भी करने में सक्षम हुई हैं।

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समूह की दीदियां कर रहीं हल्दी की खेती

हल्दी का इस्तेमाल सिर्फ़ धार्मिक उद्देश्यों के लिए ही नहीं किया जाता है। यह खाने में मसाला, रंग, औषधि और सौंदर्य उत्पाद के रूप में भी इस्तेमाल की जाती है। चूँकि हल्दी और दूसरे मसालों का इस्तेमाल कई तरह से किया जा सकता है, इसलिए अब इन्हें उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों के साथ-साथ दक्षिण भारत में भी उगाने का आग्रह किया जा रहा है। इसलिए छत्तीसगढ़ सरकार ने महिला किसानों को हल्दी की खेती से जोड़ने का कदम उठाया है, जो कैंसर से लड़ने में मदद कर सकती है और इसका इस्तेमाल दवा और घर के आस-पास भी किया जाता है।

इसका पहला परीक्षण राज्य के दंतेवाड़ा इलाके में किया गया, जहाँ महिलाओं के समूहों ने मिलकर हल्दी की खेती की। दंतेवाड़ा जिले के कुआकोंडा ब्लॉक के पाँच कस्बों को हल्दी की खेती के लिए चुना गया है। इन कस्बों में बिहान महिलाओं के बीच हल्दी की खेती लोकप्रिय हो गई है।

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) के तहत “बिहान” नामक स्थानीय स्वयं सहायता समूह की बहनों को हल्दी की खेती में मदद करने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार कई अलग-अलग काम कर रही है। हल्दी का इस्तेमाल सिर्फ़ पूजा-पाठ के लिए ही नहीं बल्कि खाने में भी किया जाता है। आयुर्वेद में हल्दी को एक बहुत ही महत्वपूर्ण औषधि के रूप में देखा जाता है। इसके अलावा, यह भारतीय पाककला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

प्रोसेस करके बिकेंगे हल्दी के उत्पाद

सरकार की ओर से बताया गया कि दंतेवाड़ा जिले के रेंगनार, गढ़मिरी, कुआकोंडा, हलबारस, मैलावाड़ा और गोगपाल गांवों की 50 महिलाएं इस योजना के तहत हल्दी उगाने का काम कर रही हैं। उद्यानिकी विभाग ने प्रत्येक महिला बागवान को 40 किलो हल्दी के बीज दिए। इन महिलाओं ने अपने आंगन में दो क्विंटल हल्दी के बीज रोपे हैं।

महिला किसानों को रोपण से लेकर कटाई तक विभाग की ओर से विभिन्न प्रकार की विशेषज्ञ सहायता भी मिल रही है। इसके साथ ही विभाग ने समूह की महिलाओं को अगले साल जनवरी में हल्दी बनाने से पहले उसे प्रोसेस करने, पैक करने और बेचने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण और उपकरण देना शुरू कर दिया है। उनके लिए अपनी पहली फसल से बनी हल्दी के सामान को कुआकोंडा स्थित स्वयं सहायता समूह “मां दंतेश्वरी महिला किसान उत्पादक कंपनी लिमिटेड” को बेचने का सौदा भी किया गया।

मां दंतेश्वरी समूह कुछ कच्ची हल्दी भी खरीदेगा। समूह इस हल्दी को प्रोसेस करने के लिए अपनी विधि का उपयोग करेगा और इसे क्षेत्र के खाद्य भंडारों और दुकानों में बेचेगा। विभाग का कहना है कि चूंकि पायलट प्रोजेक्ट सफल रहा, इसलिए महिला किसानों को अन्य क्षेत्रों में भी हल्दी उगाने के लिए प्रेरित करने की योजना बनाई गई है। सरकार के अनुसार दंतेवाड़ा क्षेत्र में हल्दी उगाने के लिए परिस्थितियां अनुकूल हैं। इसी वजह से राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन में “बिहान” हल्दी की खेती को महिलाओं की आर्थिक खुशहाली और आजीविका कमाने की क्षमता से जोड़ने का काम कर रहा है।

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